top of page

माता भवतारिणी स्तोत्रम

MOVIE ON SRIRAMKRISHNA-VIVEKANANDA MADE BY DOORDARSHAN 
 

 

  • If devotion is directed to Thee, O Ramkrishna, the way of divine Truth, then with desires all fulfilled in Thee, devotees forthwith cross over this sea of Rajas ; for Thy feet are like nectar to the mortals, quelling the the waves of death. Therefore, O thou friend of the lowly, Thou art my only refugs.
     

  • Whatever the Vedas, the Vedanta, and all other incarnations have done in the past, Sri Ramkrishna lived to practise in the course of single life. 

 

  • Without studying Ramkrishna Paramhansa first, one can never understand the real import of the Vedas, the Vedanta, of the Bhagwata and the other Puranas. His life is a searchlight of infinite power thrown upon the whole mass of Indian religious thought. He was the living commentary to the Vedas and their aim. He had lived in one life the whole cycle of the national religious existence in India.

 

 

  • Sri Ramkrishna Paramhans is the latest and most perfect, the concentrated embodiment of knowledge, love, renunciation, catholicity and the desire to serve mankind. So where is anyone to compare with him ? He must have been born in vain who cannot appreciate him ! My supreme good fortune is that I am his servant through life after life. A single word of his is to me far weightier than the Vedas and the Vedanta.

 

 

  • From the very date that Sriramkrishn was born, has sprung the Saty-Yuga. Henceforth there is an end to all sorts of distinctions, and everyone down to the Chandal will be the sharer of the divine love. The distinction between Woman and Man, between the Poor and the Rich, the Illitrate and the litrate, between Chandal and Brahmin,_he lived to root out all. And he is the harbinger of Peace - the seperation between Hindus and Mohammedans, between Hindus and Christians, all are now things of the past.

   श्रीरामकृष्ण आरित्रिकम 
  • This is the the message of Sri Sriramkrishna to the modern world : " Do not care for any dogmas or sects, or churches, or temples, or ibadatgah ; they count for little compared with the essence of existence in each man, which is spirituality ; and the more this is developed in a man, the more powerful is he for good. Earn that first, aquire that, and criticise no on, for all doctrines and creeds have some good in them. Show by your lives that religion does not mean words, or names, or sects, but that means spiritual realisation". Therefore my Master's message to mankind is,_" Be spiritual and realise Truth for yourself ".                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                 ..........SWAMI VIVEKANANDA.
  • श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद भावधारा-दर्शन से ईश्वराबोध जिस आसानी से उद्घाटित जान सकते वैसे किसी अन्य व्याख्या से जानना निःसंदेह कठिन प्रतीत होने से ही हम परम सत्य परमानंद के सम्पूर्ण सत्य के आध्यात्मिक ज्ञान से बंचित रह जाते हैं I जबकि सभी ईश्वर तत्वों में निर्गुण-सगुण-सर्वगुण, आकार-प्रकार-निराकार, व्यक्त-अव्यक्त-सर्वव्यक्त और सत्य-सनातन परम ब्रम्ह परमात्मा एक समान एक ही साथ एक ही अस्तित्व में सर्वभूतों में विराजमान रहता है_जब तक उसकी अनन्त शक्तियों का अनन्त प्रवाह आत्मा के रूप में हममें अन्तर्निहित होती हैं हम बजते रहते हैं और जैसे ही उस शक्ति की अविरल धारा का बहना रुकता है हम निर्जीव-निष्प्राण भौतिक जगत के नाशवान पदार्थ होते हैं ! वह शक्ति श्रोत परमात्मा ही आत्मा का गंतव्य है आप चाहे इश्वर-अल्लाह-गॉड चाहे जिस किसी भी नामरूप में पूजो, नवाजो, पुकारो या स्मरण करो ! वह वही है, एक ही है, और मात्र वही ही है और कुछ भी नहीं !

 माँ शारदा आरित्रिकम

  • श्रीरामकृष्ण देव के विवाह का भी अदभुत संयोग है_जब श्रीठाकुर की माता जगदम्बा के प्रति भक्ति सभी मानवीय सीमाओं को पार कर निर्विकल्प समाधि तक तल्लीन होने की सुचना कामारपुकुर में उनकी माता चंद्रमणि और भाई रामेश्वर के पास पहुंची तो सभी लोग चिंतित होकर श्रीरामकृष्ण देव का विवाह कर देना उचित समझा I परिवार के लोग विवाह के लिए योग्य बधू की खोज करने लगे साथ में श्रीरामकृष्ण को गाँव आने के लिए संवाद भेजा I श्रीरामकृष्ण घर आकर माँ और भाई को बेचैन होने से मना करते हुए कहा_मेरा विवाह तीन मील उत्तर-पश्चिम स्थित जयरामवाटी गाँव के रामचंद्र मुखर्जी की पांच वर्षीय कन्या शारदामणि के साथ पूर्व निर्धारित है ! पता करने पर श्रीरामकृष्ण की बात सत्य प्रमाणित हुई और श्रीरामकृष्ण (23 वर्ष) का शुभ-विवाह शारदामणि (5 वर्ष) से 1859 ई0 में निर्विघ्न और विधिवत संपन्न हो गया I दोनों वर-वधु के आयु के बीच लगभग 19 वर्षो का अंतर था I 

  • श्री रामकृष्ण विवाह के तीन महीने बाद गाँव से पुनः दक्षिणेश्वर आ गए ! बाद में श्रीरामकृष्ण ठाकुर के नाम से और शारदामणि श्रीमाँ शारदामणि के नाम से प्रसिद्ध हुए ! श्रीमाँ शारदामणि का जन्म 1853 ई  और महासमाधि 1920 ई0 में हुआ था I 

 

श्रीरामकृष्ण-शारदामणि विवाह  
 

विडिओ दिग्दर्शन 
 

श्रीरामकृष्ण देव और स्वामी विवेकानन्द जी की एक दुसरे से भेंट भारतवर्ष के इतिहास में एक सुखद और आश्चर्यजनक परिस्थितियों में हुआ था I अंग्रेजी शासन काल में यह भारतवर्ष के सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक परिस्थितियों के संक्रमण का काल था I धार्मिक स्तर पर भी भारत में सत्य सनातन धर्म का हिन्दू पाखण्डी कृत्य में परिवर्तित हो जाना ; अंग्रेजों के साधन-संपन्न क्रिश्चियन धर्म के गतिशील प्रचार-प्रसार से इस्लाम भी कुंठित हो चला था ; फिर अंग्रेजों की बांटो और राज करो की कुटिल चाल से भारतीय हिन्दू-मुसलमान दोनों धर्मालम्बी परस्पर विरोधी हो चले थे I भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजी शासन की चाटुकारिता की सीमा के पार चलते हुए पद और प्रतिष्ठा पाकर साधन संपन्न जीवन का अय्यासी की हद तक उपभोग करने में निमग्न थे I उन्नीसवी सदी के 1880-86 ई0 की इस अल्पावधि में वेदान्त-भक्ति के शिरोमणि श्री श्रीरामकृष्ण ने कठोर जप-तप  से  प्राप्त अपने  धर्म  उपलब्धि की उच्चतम अवस्था निर्विकल्प समाधि तक 

                             

श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद भेंट :  
 

के अनमोल धरोहर स्वामी विवेकानंद को हस्तांतरित कर स्वयं महासमाधि में प्रयाण कर गए थे ! छह सात वर्षो की इस छोटी सी अवधि में श्रीरामकृष्ण ने अपने नरेन् को रच-गढ़ कर भारत के कल्याण के लिए एक योद्धा सन्यासी के रूप में परिवर्तित कर स्वामी विवेकानंद बना दिया था !

            प्रारम्भिक काल में स्वामी विवेकानंद के श्रीरामकृष्ण पर पूर्ण विश्वास नहीं होने पर श्रीठाकुर ने यह रहस्योद्घाटन करते हुए नरेन् से कहा था_" नरेन् ! तू अभी स्वयं को नहीं जानता, तू ऋषिमंडल का वह देवऋषि है जिसे मैं समाधि से जगा कर आया था कि मैं आगे चलता हूँ तू भी पीछे आ जाना ! धरती का पुन्यभूमि भारत फिर से तप्त और दग्ध हो चला है, चारो ओर अन्धकार ही अन्धकार फैलता चला जा रहा है भारत का वैदिक धर्म पृथ्वी के तीनो मुख्य धर्म की धर्मान्धता के कुकृत्यों के कारण मानव समाज को कष्ट और पीड़ा पहुंचा रही है, पाखंडी अवगुणों के क्रूर और हिंसक स्वभाव के अत्याचारी  कुटिलता से भारतीय जनमानस कष्ट में त्राहि-त्राहि कर रही है शांत, निर्मल और प्रेम की वैदिक मानवता शक्तिहीन हो कर रह गयी है, अतएव भारतवर्ष को तुम्हारी जन-कल्याणकारी आविर्भाव की आवश्यकता है !"

गंगा घाट से बेलुर मठ का दिग्दर्शन 

श्रीरामकृष्ण के द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन-कल्याणकारी व्यक्तित्व के गठन में बड़ा ही विवेक पूर्ण दायित्व रहा था ! जब श्रीरामकृष्ण ने अपने तपस्या से अर्जित सम्पूर्ण तपःशक्ति को स्वामी विवेकानंद को सौंप दिया फिर भी स्वामीजी असंतुष्ट भाव से श्री ठाकुर से निर्विकल्प समाधि अर्थात स्वेच्छा से भौतिक शरीर से महाप्रयाण तथा मोक्ष की प्राप्ति करने की दीक्षा भी देने का अनुरोध कर रहे थे तो श्रीरामकृष्ण बड़े ही कुपित होकर स्वामी जी को फटकार लगाते डांटते हुए कहा_ " छिः छिः नरेन् इतना स्वार्थी तो तुम्हे मैंने नहीं जाना था अपने लिए मोक्ष मांगकर तुमने मुझे मर्माहत किया है, मैं तो समझता था कि तुम शक्ति संपन्न होकर सम्पूर्ण मानवता के लिए वटवृक्ष की भाँति भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण जगत को अपनी छाया से शीतल स्निग्ध स्नेह दे सकोगे पर हाय तुम तो बड़ा ही क्षुद्र निकले !

श्रीरामकृष्ण  ने स्वामीजी को अपने  अपराध पर  लज्जित और मर्माहत पाकर फिर श्री ठाकुर ने स्वामीजी को का मार्गदर्शन किया था !  रे नरेन् ! तुम ही तो मेरा आधार है इस जगत में आने का जिस प्रकार राम के लिए हनुमान और कृष्ण के बलराम ने साथ-साथ पृथ्वी पर आविर्भाव किया था, वैसा ही कुछ  तुम्हारा और मेरा भाव है ! तुम्हे स्वयं पूर्ण ज्ञान है जो समय-समय पर आलोकित होकर इस धरती पर तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहेगा और इस धरती पर तुम्हारा कार्य समाप्त हो जाने के पश्चात ही तुम स्वयं इस इहलौकिक शरीर का परित्याग कर सकोगे !"  

 

                                                                        बेलुड मठ कलकत्ता 

 

स्वामी विवेकानंद जी द्वारा सन 1897 ई0 में 40 एकड़ भूमि में गंगा किनारे विकसित बेलुड मठ कलकत्ता I 

      श्रीरामकृष्ण के तपोबल के आदर्श सर्वधर्म समभाव की वैदिक-इस्लामिक-ईसाई स्थापत्य कला पर निर्मित  I

 

 

       बेलुड मठ से गंगा दर्शन            Sri Sri Ramkrishn Math And Mission, Belur, Kolkata (WB).           बेलुड मठ का गंगा घाट

 श्री श्री ठाकुर रामकृष्ण परम हंसदेव जी माँ दक्षिणेश्वर मंदिर के गंगा तट पर बैठे अचानक चिल्ला उठे मारा मारा, मुझे मारा I ठाकुर के चिल्लाने पर मंदिर प्रांगण के अन्य लोग ठाकुर के पास दौरे-दौरे आये कि कौन नराधम इस देवतुल्य को मारा है ?

ठाकुर के पास आने पर लोगों ने देखा कि उनके पीठ पर किसी के पाँचों उँगलियों के स्याह निशान स्पष्ट दिख रहे हैं I ठाकुर से अस्पष्ट इशारा कर गंगा में जाती उस नाव और उसके दो नाविक भाइयों के बीच होते झगडे से उत्पन्न बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को मारने के कारण ही ठाकुर को आघात लगी थी जिसका निशान उनके शरीर पर अंकित हो गया था ! ठाकुर ने छोटे भाई की पिटाई की बेदना का अनुभव कर चिल्ला उठे थे मुझे मारा, मुझे मारा ! ठाकुर की एकात्म बोध ऐसी थी, मनुष्य के प्रति दर्द ; जीव-जंतु के प्रति भी उतनी ही करुणा ; वनस्पतियों की उतनी ही चिंता ! ठाकुर रामकृष्ण सर्व भूतों में एक ही आत्मा का दर्शन करते थे ! यही भारतीय आदर्श है !

   श्री ठाकुर की मार्मिक अनुभुति 
 

GANGAVIEW  BELUR MATH

तर्क के द्वारा आत्मा की धारणा नहीं की जा सकती ? जो कहता है मैंने जान लिया तो समझना होगा कि वह आध्यात्म के बाल्यावस्था में है अर्थात निम्नतम सोपान पर ही है I ईश्वर जितने ही सूक्ष्मतर हैं उतने ही बृहत्तर भी, वे अस्तित्वविहीन सर्व भूतों में सामान रूप से विद्यमान हैं I श्री रामकृष्ण कहते हैं ईश्वर लाभ ही मानव जीवन का एकमात्र लक्ष्य है चाहे यह कितने ही जीवन चक्रों को पूरा करने के बाद प्राप्त हो I धर्म माने एक पथ या उपाय जिसका अनुशरण कर हम ईश्वर से एकात्म हो सकते हैं, उनके पास चाहे जिस पथ या उपाय से पहुंचना हो उसका अनुगमन करो ! जैसे ईश्वर अनंत हैं वैसे ही उनको आत्मसात करने के मार्ग भी असंख्य हैं I श्री रामकृष्ण कहते हैं--इश्वर ही गन्तब्य है क्योंकि प्रत्येक आत्मा जो देह की बैटरी है वह परमात्मा का अंश और इकाई है जबतक शरीद को शक्ति की आवश्यकता है आत्मा उसमे अवस्थित है जैसे ही कार्य समाप्त आत्मा अपने गंतव्य की ओर ! श्री रामकृष्ण की विभिन्न धर्मो और पथो की साधना से ईश्वरानुभूति प्राप्त किया उसका सार यही है कि वे एक वैदिक सनातनी ब्राम्हण माँ काली मंदिर का पुजारी होते हुए भी उन्होंने चर्च में जाकर ध्यान-चिंतन और प्रार्थना की वही मस्जिद जाकर पांचो वक्त का अजान भी दिया ; विभिन्न मत-धर्मालम्बी के योग्य पुजारी या गुरु रामकृष्ण के इच्छा मात्र से साधना संपन्न कराने  को स्वमेव उद्दत हो उनके पास पहुँच जाते थे I सर्वप्रथम ब्राम्हणी भैरवी श्री रामकृष्ण को देखते ही चिल्ला उठी थी--बेटा तू यहाँ छिपा था अबतक और सारे जहां तुझे ढूंढ़ती फिर रही थी, वे रामकृष्ण को तंत्र साधना की सर्वोत्तम शिखा में निपुण किया था I फिर तोतापुरी ने दक्षिणेश्वर आकर अद्वैत साधना की उच्चतम स्तर पर उन्हें विराजमान किया I संभवतः श्री रामकृष्ण की विभिन्न आध्यात्मिक साधनाओ को सीखने की अदम्य और अव्यक्त की लालसा के कारण ही ईश्वर प्रायः उनके पास यथायोग्य गुरुओं को समय समय पर भेज दिया करते थे ; ईश्वर श्री रामकृष्ण से असीम प्रेम जो करते थे !

श्रीरामकृष्ण का इश्वरबोध 
 

GATEWAY TO SRIRAMKRISHN ASHRAM, BELUR MATH​

       

SHOWER INSIDE LAWN

श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद भावधारा दर्शन से ईश्वर के बारे में जिस आसानी से उद्घाटित जान सकते वैसे किसी अन्य व्याख्या से जानना निःसंदेह कठिन प्रतीत होने से ही परम सत्य परमानंद के सम्पूर्ण सत्य के आध्यात्मिक ज्ञान से बंचित रह जाते हैं I यही कारण  है कि विभिन्न समुदाय, सम्प्रदाय, धर्म का अनुशरण करते हुए, उस परम पिता परमेश्वर को विभिन्न विभिन्न नामों से जानते हुए हम इस भौतिक जगत में विभिन्न भागों में बाँटकर अराधना, आस्था और विश्वास के धरातल पर मतभेद, असहिष्णुता और विद्वेष करने लग जाते हैंI 

जबकि सभी ईश्वर तत्वों में एक समान एक साथ एक ही अस्तित्व में विराजमान रहता है_और वह है इश्वर-अल्लाह-गॉड चाहे जिस किसी भी नामरूप में पूजो, नवाजो, पुकारो या स्मरण करो !  

 

               

bottom of page